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क्यों लिखते हो?

अक्सर लोग पूछते है,
क्यों लिखते हो?

अक्सर में बेबाक सा हो जाता हूं,
जैसे में नहीं जानता क्यों,
शायद उन अनकही बातो को बोलने का जरिया है ये,
ज़ेहन में रुक गए अनगिनत शब्दों का दरिया है ये,

में लिखता हूं उस नन्ही सी जान के लिए,
फुटपाथ पर खिलौनों के साथ बेची गई मुस्कान के लिए,
शायद लिखता हूं शहर की भीड़ में उलझे हुए उस परिवार के लिए,
सुनहरे कल की आश में बेचे गए उस मकान के लिए,

लिखता हूं सफर में मिले हुए कुछ खास के लिए,
लिखता हूं बार बार दौराए गए इतिहास के लिए,
लिखता हूं तुम्हारे मुज पर विश्वास और अविश्वास के लिए,
जीवंत और मृत्, गरीब और अमीर, छोटे और बड़े,
लिखता हूं खुस और उदास के लिए,

बहोत कुछ लिखना चाहता हूं,
पर कभी कभी थम सा जाता हूं,
जो दिखता है वो काफी गेहरा है,
पर क्या में उस उसी गहराई से लिख पाता हूं?

सोचता हूं बस अब दफा करू इसको,
प्यारी है कलम पर खफा करू इसको,
अगले ही पल ये खयाल बदल जाता हूं,
हा, लिखता हूं में क्योंकी लिख पाता हूं।

~ निकुंज ठक्कर